अपनी आझादी को हम हरगीज मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकीन सर झूका सकते नहीं
हमने सदियों में ये आझादी की नेमत पाई हैं
सैकडों कुरबानियाँ दे कर ये दौलत पाई हैं
मुस्कुराकर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियाँ
कितने विरानों जो गुजरे हैं पर जन्नत पाई हैं
खाक में हम अपनी इज्जत को मिला सकते नहीं
क्या चलेगी जुल्म की एहल-ए-वफा के सामने
आ नही सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फौजे ले के आए अम्न का दुश्मन कोई
रुक नही सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकता नहीं
वक्त की आवाज के हम साथ चलते जायेंगे
हर कदम पर जिंदगी का रूख बदलते जायेंगे
अगर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दार-ए-वतन
अपनी ताकत से हम उस का सर कुचलते जायेंगे
एक धोका खा चुके हैं और खा सकते नहीं
हम वतन के नौजवान हैं, हम से जो टकरायेगा
वो हमारी ठोकरों से खाक में मिल जायेगा
वक्त के तुफान में बह जायेंगे जुल्म-ओ-सितम
आंसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
जो शपथ बापू ने सिखलाया वो भूला सकते नहीं