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by TanvirSalim1
on 23/2/15
1950 में राष्ट्रपति डॉ. राजेंदर परसाद के आदेश के ज़रिये कांग्रेस सरकार ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद यह लाज़मी कर दिया कि अनुसूचित जाति के लाभ प्राप्त करने के लिए धर्म से हिंदू होना लाज़मी है. इस प्रकार 1950 के बाद हिन्दुओं को छोड़कर सभी को अनुसूचित जाति की सूची से निकाल दिया गया. हालाँकि ये बात भारतीय संविधान की सेक्युलर भावना के खिलाफ थी. जेसा की आर्टिकल 14, 15 और 16 में समानता के अधिकार और आर्टिकल... 25 में धर्म की स्वतंत्रता है की बात कही गयी है. मगर डॉ. राजेंदर परसाद ने एक धर्मनिरपेक्ष देश के सार का उल्लंघन करके उसके सेक्युलर आयींन की धज्जियाँ उड़ा दीं, और इसको अमली जमा पहनाया कांग्रेस सरकार ने. जेसा की मैने कहा ये मौलिक अधिकार के खिलाफ था लिहाज़ा 1956 में सिखों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिल गया और बाद में 1990 में बौद्ध को भी. लेकिन मुसलमानों को अभी तक ये हक नहीं मिला, शायद इनकी नज़र में मुसलमानों का हिंदुस्तान में कोई मोलिक अधिकार है ही नहीं. और हद तो तब हो गयी जब 23 जुलाई 1959 को कांग्रेस की केंद्रीय सरकार ने परिपत्र में ये पारित कर दिया के मुसलमानों को अनुसूचित जाति का फायेदा लेने के लिए फिर से हिंदू धर्म अपनाना पड़ेगा. इससे साफ ज़ाहिर है के बी.ज.पी. के साथ-साथ कांग्रेस को भी मुस्लमान एक आँख गवारा नहीं.copied