profile image
by TanvirSalim1
on 19/2/14
I like this button2 people like this
4 February , 1922 को चौरी चौरा में थाना फूँक दिया कुछ नाराज़ और सदमे से भरे लोगों ने. सदमा इस बात का था की उनके दो दर्जन सत्याग्रही अँग्रेज़ की गोलियों का शिकार हो चुके थे. थाने में अंग्रेज़ो के वफ़ादार सिपाहिी, जो सवयं भारतीय थे, जल कर मर गये. क्या बुरा किया था अपने गुस्से को इस तरह निकाल कर उन नाराज़ लोगों ने.

"अब्दुल्लाह बनाम ब्रिटिश साम्राज्या" मुक़दमा चला,जिसमें 19 को फाँसी और बाक़ी को सख़्त क़ैद की सज़ा हुई. इन क्रांतिकारियों को 2 जुलाइ 1923 में फाँसी दे दी गयी. फाँसी के फंदे पे झूलने वाला अब्दुल्लाह जुलाहा भी था.

सबसे ज़यादा गुस्से की बात ये है की गाँधी ने उन क्रांतिकारी शहीदों की क़ुर्बानी को वो इज़्ज़त नहीं दी जो उनको मिलनी चाहिए थी. गाँधी ने उनके कार्य की एक तरह से भर्त्सना की और असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.

ये तो थी गाँधी की बात, पर सवाल ये है की आज कोई क्या अब्दुल्लाह नाम के उस जुलाहे को जानता है की नहीं..नेहरू और गाँधी के नाम पे हज़ारों स्मारक है, पर चौरी चौरा के उन शहीदों को जिन का नेतृत्व अब्दुल्लाह नाम का आदमी कर रहा था उसे कोई जानता भी नहीं है.

है ना हमारे लिए शर्म की बात. बिस्मिल,भगत सिंग, अशफ़क़ुलाह ख़ान की बात तो हम करते है पर अब्दुल्लाह को याद नहीं करते. क्या उसे फाँसी के फंदे पे झूलते तकलीफ़ नहीं हुई थी?

गाँधी जी आप महात्मा तो बन गये पर अपने किरदार पे इक सवालिया निशान छोढ़ गये....आप को तो जाती पाती के भेद भाव से ऊपर रह कर अपनी पहचान बनानी थी..मगर..आप भी..