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by TanvirSalim1
on 22/8/15
A comment on fb regarding owaisi's politics:
~असादुद्दीन ओवैसी साहब ने कहा कि --- मुसलमानों को सेक्युलर पार्टियों का क़ुली नहीं बनना चाहिए। बात में तो दम है। बिल्कुल नहीं बनना चाहिए। कब तक सेक्युलरिज़्म की लाश ढोते रहें, अब तो कंधे भी थकने लगे।
चलिए साहब हमें बीजेपी का भी ख़ौफ नहीं। ख़ौफ वो खाएं जिन्हें मुल्क की फिक्र हो।
सब बातें ठीक हैं मगर कह कौन रहा है? आप पर क्यों भरोसा किया जाए? आपका रिकॉर्ड क्या भरोसे लायक़ है? और फिर आपके पीछे आकर हम क्या हासिल कर लेंगे?
चलिए आपकी इब्तेदा से शुरू करते हैं। सुना है जब मुसलमानों की ठेकेदारी के लिए आपकी तंज़ीम बानी थी तब कोई क़ासिम रिज़वी साहब इसके सदर बने। हिंदुओं की आंखे निकाल लेने से लेकर ईंट से ईंट बजा देने के नारे लगाए। बदले में क्या मिला? हैदराबाद को डेढ़ लाख मुसलमानों की लाशें और रियासत का नाम समेत ख़ात्मा। सदर साहब सरकार से सौदेबाज़ी करके रातों रात चले गए पाकिस्तान। आपके अब्बा जान के हिस्से आया पार्टी का तमाम चंदा, जायदाद और वली अहदी।
पहले आम चुनाव से लगातार सलाहुद्दीन ओवैसी साहब हैदराबाद से सांसद बनते रहे। शहर की वक़्फ जायदाद कम होती रहीं आपकी जायदादों में इज़ाफा होता रहा। मुसलमानों का तालीमी और समाजी रसूख़ घटता रहा और आपके निजी इदारे बढ़ते रहे। आपके अब्बा सांसद थे, आप दोनों भाई विधायक और घर में चार विधायक समेत दर्जन भर पार्षद। इस दौर में हैदराबाद में आधा दर्जन दंगे हुए वो भी आपके मुहल्ले में। न आपने सेक्युलर कांग्रेस का दामन छोड़ा न आपके अब्बाजान ने। चारमीनार की दीवार के नीचे लक्ष्मी नारायण पधार गए। हर फसाद के बाद मंदिर का दायरा बढ़ता गया साथ में आपके वोट भी। घटे तो मुसलमान और उनका कारोबार। आपने न किसी मरने वाले ख़बर ली न लुटने वाले की। बस कांग्रेस से मुतालबा करते रहे जो आज तक पूरा नहीं हुआ। इस दौरान डिप्टी मेयर और तमाम दर्जा प्राप्त मंत्री आपके कुनबेदारों में बढ़ते रहे।
आपका दौर आया। ओल्ड मलकपेट में मस्जिद पर क़ब्ज़ा हुआ आप ख़ामोश रहे। रामोजी राव ने फिल्म सिटी के नाम पर वक़्फ की तमाम ज़मीन क़ब्ज़ा ली, आपकी आवाज़ न निकली। राजशेखर रेड्डी के साहेबज़ादे ने बेहतरीन इमारत ख़ड़ी कर ली वक़्फ की ज़मीन पर आपके बोल नहीं फूटे।
आपकी ज़बान तब चली जब किरण कुमार रेड्डी से आपकी डील नहीं हो पाई और आपके मेडिकल और इंजीनीयरिंग कॉलेजों में दाख़िलों और मुसलमानों के वज़ीफे में घपले की जांच शुरू हुई। सेक्युलरिज़म में उसी रोज़ कीड़े पड़े और आपको याद आया कि क़ौम यतीम है और उसे सहारे की ज़रूरत है। वरना तो मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले से लेकर सोहराबुद्दीन एन्काउंटर तक इस दौर में हुए। मगर आपकी ग़ैरत नहीं जागी।
चलिए साहब देर आयद दुरुस्त आयद। टीआरएस आई। हालांकि उसकेे आने में आपका कोई रोल नहीं था लेकिन आपके अज़ीज़ रिश्तेदार इस सरकार में वज़ीर बने। हमें कोई ऐतराज़ नहीं। सियासत का नाम ही विज़ारत और इख़्तेदार है। लेकिन कभी कभी ग़रीब ग़ुरबा अवाम की भी सुध ले लेनी चाहिए। मगर ये क्या? ये तो अब भी पांच नौजवान आपकी सरकार ने बेगुनाह मार डाले। आपकी ग़ैरत फिर शमसाबाद के क़ब्रिस्तान में दफ्न हो गई और शमसाबाद की वक़्फ जायदाद एयरपोर्ट की नीचे।
इसके बाद आपने महाराष्ट्र का रुख़ किया। आपकी तमाम ताक़त लगाने के बाद आपको महज़ दो सीट मिली। मुसलमानों के बिना सेक्युलर पार्टी दफ्न नहीं हुईं आपसे कई गुना बेहतर रहीं। एक दो इलेक्शन में मुसलमान वोटों के बिना भी जीतना सीख जाएंगी, जैसे टीआरएस और टीडीपी। आप अपनी दो ईंट की दुकान सजाए रखना। हर बार किसी न किसी की सरकार बचाने के काम आएगी। इस बार महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए किया, हो सकता है अगली बार किसी मनहूस सेक्युलर के लिए वॉक ऑऊट करना पड़ जाए।
हमने लोकसभा चुनाव में दलित और जाटों को हिंदू होते देखा है। जैसी आपकी ज़बान है उसे देखकर कोई और आपके पास आने से रहा। यूपी में तो फिर देवबंदी, बरेलवी अहले हदीस से भी जूझना होगा। तौक़ीर रज़ा, आज़म ख़ान, महमूद मदनी जैसों से भी निपटना होगा।
बहरहाल हम यक़ीनन मूर्ख हैं तभी आपके तमाम ऐब नज़अंदाज़ करते आए हैं मगर इतने भी नहीं हैं कि अपने घर में आग लगा लें। दंगाईयों की बस्ती में आपसा रहनुमा मिला तो किसकी पनाह लेंगे? आप तो वोट की फसल काट कर अपने घर हयदेराबाद चले जाएंगे।
हम ये क्यों भूल जाएं कि बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी जिसने लंदन से वकालत कि है जिस मज़बूती से रजत शर्मा की संघी अदालत में अपनी दलीलें रखता है उसकी आधी आवाज़ के साथ भी कभी किसी हाशिमपुरा वाले के हक़ में या किसी ग़रीब मुसलमान के लिए आज तक मुल्क की किसी अदालत में नज़र नहीं आया। जो इंसान अपने भाई को रिहा कराने के लिए दिन रात जिरह की तैयारी करता रहा उसने जेलों में बंद ग़रीबों के हक़ में कभी आह भी न की। उसने कई मुसलमानों को इन्हीं अदालतों में कभी आतंकवादी साबित होते देखा और कभी फांसी की सज़ा सुनते। बैरिस्टर ओवैसी हमें कहीं नज़र हीं आया। जगह हर जगह लाशों पर मरसिया पढ़ता सियासी ओवैसी ही मिलता है। क्या उसके वादों और नारों की तरह उसकी क़ानून की पढ़ाई भी झूठी है?.....copied..