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by TanvirSalim1
on 1/11/16
On a hot summer day in Gorakhpur:
ये कहानी शुरू होती है 1857 के 'स्वतंत्रा के पहले संग्राम' से. गोरखपुर के अली नगर में बाबू बंधू सिंह को लटका दिया गया फांसी के फंदे पे.
1922 में चौरी -चौरा में निहत्तो को गोलियों से भून गया गया, और वहीँ से ज़ोर पकड़ा आज़ादी की लड़ाई ने. वास्तविकता में क्या हुआ था चौरी-चौरा में? क्यों गाँधी जी को दोष देना उचित है?
एक सफर जो शुरू होता है गोरखपुर की गलियों से, और ले जाता है उस दुनिया में जहाँ 9/11 ने सब कुछ तहस नहस कर दिया था.
क्यों गोरखपुर से लोगों का पलायन आम है? कैसा था दशकों पुराना गोरखपुर, और क्या होता है जब कोई वापस लौट के आता है?
क्यों जाति पति और धर्म का बोल बाला है? हिंदुओं में और मुसलमानों में भी?
ऐसे में बिछी है ऐसी बिसात जहाँ 'बाहरी शक्तियां' चल रही है नयी नयी चाल. और क्यों न हो सारी जंग सत्ता के लिए है? एक ऐसा चुनाव जो भारत ने कभी न देखा हो, चुनने को तैयार है उनको जो राज कर सकें.
शामिल हैं कश्मीर की वादियां, और उसमें रहने वाले लोग. एक ऐसी जंग जो दशकों पुरानी है. क्या होगा आगे? कैसे होगा और कब होगा? एक कहानी जिसे जानना ज़रूरी है. है न?