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by TanvirSalim1
on 18/1/15
आज का वोटर भी बिकने को तय्यार बैठा है, तो उसे खरीद्ने वाले भी. सब कुछ व्यापार सा बन गया है. आज पैसा लगाओ, कल पैसा कमाने के लिए. ऐसे में बात बने भी तो कैसे? क्रांति आए भी तो कैसे? कुछ बदले भी तो कैसे?