profile image
by TanvirSalim1
on 1/1/17
एक नया साल बांहें फैलाये हमारे सामने है. हम पिछले बरस की चोटों से छलनी जिस्म को घसीटते हुए, रास्ते के खौफ से सहमे हुए, उम्मीद का दामन पकड़ आगे बढ़ रहे हैं. आगे बढ़ना लाज़िम है, क्योंकि पीछे छोड़े हुए क़दमों के निशान से क्या लेना देना? वक़्त ठहरता नहीं है. मौजें रूकती नहीं हैं. साहिल पे बनाये घरोंदे बह जाते हैं. क़ाफ़िला कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है, और हम भी न चाहते हुए भी काफिले की भीड़ में कहाँ से कहाँ पहुँच जाते है....शुभ रात्रि..