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by TanvirSalim1
on 20/4/15
यहाँ के लोकतंत्र का एक दुखद पहलू. जीतने के बाद अधिकतर सांसद अपने पारी का आरंभ एक झूठ से करते हैं. ये झूठ होता है चुनाव में खर्च किए गये धन का बियोरा. ऐसे में उनसे और आशा भी क्या की जा सकती है? चुनाव इतने ख़र्चीले बना दिए गये है की कोई चुनाव मैदान में उतरे भी तो कैसे?